आप का आदर करूँ, सम्मान करूँ, सत्कार करूँ
आपकी हर बात मानूँ, क्यूंकि आप मुझ से बड़े हैं
जिस दरवाज़े पर मैंने आज दस्तक दी है
आप भी बरसों से उसके बाहर खड़े हैं
मुझसे ज्यादा फल खाए और झेले हैं कांटे भी
और हर फल की शक्ल जुदा थी स्वाद एक था
हर कांटे की शक्ल जुदा थी वार एक था
काटों के इस जर्जर तन को नमन करूँ
या एक और फल के इच्छुक इस मन को नमन करूँ
बरसों तक खुद से लड़े हैं फिर भी मैदान मैं खड़े हैं
आप बेशक मुझ से बड़े हैं, आप बेशक मुझ से बड़े हैं!!!
Monday, May 25, 2009
Kalam
कल रात कुछ लिखने बैठा तो कलम दूर जा कर बैठ गयी
अपनी ताकत पर ऐंठ गयी और बोली तेरे मेरे रास्ते बँट गए हैं
तुझे दिखाई नहीं देता मेरे होंठ फट गए हैं
थक गयी हूँ लिखते - लिखते तेरे सच्चे झूठे किस्से
आज क्या नयी बात लिखेगा, वही सुबह वही रात लिखेगा
थोडा पुण्य पाप लिखेगा, फिर खुद को बेताब लिखेगा
अपनी बेताबी की धुन में मेरे दुःख को भूल गए हो
एक वाह की चाह में जाने क्यूँ तख्तो पे झूल गए हो
वैश्या बना रखा है, किसी के भी कोठे पर नचवा देते हो
चंद पैसों के लिए कुछ भी लिखवा देते हो
एक प्रेमी ने मुझे बनाया, मुझसे प्रेम पत्र लिखवाया
आज में ढोंगी की बेटी हूँ,
रोज बेचता है मुझको, बात समझ में आई तुझको
मैं बोला चुप हो जा पगली
यूँ भावों मैं मत बहका
भाव होते तो लेखक या कवी बनता?
सीमा पर जा कर डट जाता अब तक तो शायद मर जाता
पर मरना नहीं मुझे जीना है, इसलिए ज़हर तुझे ये पीना है
मैं जो बोलूं तुझे लिखना है, दोनों को एक सा दिखना है!!!
अपनी ताकत पर ऐंठ गयी और बोली तेरे मेरे रास्ते बँट गए हैं
तुझे दिखाई नहीं देता मेरे होंठ फट गए हैं
थक गयी हूँ लिखते - लिखते तेरे सच्चे झूठे किस्से
आज क्या नयी बात लिखेगा, वही सुबह वही रात लिखेगा
थोडा पुण्य पाप लिखेगा, फिर खुद को बेताब लिखेगा
अपनी बेताबी की धुन में मेरे दुःख को भूल गए हो
एक वाह की चाह में जाने क्यूँ तख्तो पे झूल गए हो
वैश्या बना रखा है, किसी के भी कोठे पर नचवा देते हो
चंद पैसों के लिए कुछ भी लिखवा देते हो
एक प्रेमी ने मुझे बनाया, मुझसे प्रेम पत्र लिखवाया
आज में ढोंगी की बेटी हूँ,
रोज बेचता है मुझको, बात समझ में आई तुझको
मैं बोला चुप हो जा पगली
यूँ भावों मैं मत बहका
भाव होते तो लेखक या कवी बनता?
सीमा पर जा कर डट जाता अब तक तो शायद मर जाता
पर मरना नहीं मुझे जीना है, इसलिए ज़हर तुझे ये पीना है
मैं जो बोलूं तुझे लिखना है, दोनों को एक सा दिखना है!!!
Sunday, April 5, 2009
मधुशाला
Lyrics of मधुशाला
(Sung By Manna De and Written by Dr Harivansh Rai Bachchan)
(Sung By Manna De and Written by Dr Harivansh Rai Bachchan)
मदिराल्य में जाने को घर से चलता है पीनेवाला
किस पथ से जाऊं असमंजस में है वोह भोला भाला
अलग अलग पथ बतलाथे सब पर मैं यह बतलाता हूँ
राह पकड़ तू एक चला-चल पा जायेगा मधुशाला
सुन कल-कल चल-चल मधु-घट से गिरती प्यालों में हाला
सुन रुन झुन-झुन चल वितरण करती मधुसा की बाला
बस आ पहुंचे दूर नहीं कुछ चार कदम और चलना है
चहक रहे सुन पीने वाले महक रही ये मधुशाला
लाल सुरा की धार लपट सी कह ना देना इसे ज्वाला
मदिरा है मठ इसको कह ना देना उर्र का छाला
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं
पीड़ा में आनंद जिसे हो आए मेरी मधुशाला
धर्म-ग्रन्थ सब जला चुकी है जिसके अन्तर की ज्वाला
मन्दिर मस्जिद गिरजे सब को तोड़ चुका जो मतवाला
पंडित मोमिन पादरियों के फंदों को जो काट चुका
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला
लालायीत अधरों से जिसने हाय नहीं चूमी हाला
हर्षित कम्पित कर से जिसने हाय मधु का छुहा प्याला
हाथ पकड़ कर लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला
बने पुजारी प्रेमी साकी गंगा जल पावन हाला
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला
और लिये जा और पीये जा इसी मन्त्र का जाप कीये जा
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं मन्दिर हो ये मधुशाला
एक बरस में एक बार ही जगती होली की ज्वाला
एक बार ही लगती बाजी जलती दीपो की माला
दुनिया वालों किंतु किसी दिन आ मदिरालय में देखो
दिन में होली रात दिवाली रोज़ मनाती मधुशाला
अधरों पर हो कोई भी रस जिव्हा पर लगती हाला
हां जग हो कोई हाथों में लगता रखा है प्याला
हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती
आंखों के आगे हो कुछ भी आंखों में है मधुशाला.
सुमुखी तुम्हारा सुंदर मुख ही मुझ को कंचन का प्याला
छलक रही है जिसमे मानिक रूप मधुर मादक हाला
मैं ही साकी बनता मैं ही पीने वाला बनता हूँ
जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम वहीँ कही हो मधुशाला
दो दिन ही मधु मुझे पिला कर ऊब उठी साकी बाला
भर कर अब खिसका देती है वोह मेरे आगे प्याला
नाज़-ओ-अदा अंदाजों से अब हाय पिलाना दूर हुआ
अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़-अदाई मधुशाला
छोटे से जीवन में कितना प्यार करूँ पीलूँ हाला
आने के ही साथ जगत में कहलाया जाने-वाला
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तय्यारी
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन मधुशाला
साथ सकी हो अब तक साकी पीकर किस उर्र की ज्वाला
और और की रटन लगाता जाता हर पीने-वाला
कितनी इचहा एक हर जाने-वाला यहाँ छोड़ जाता
कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला
यम् आएगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला
पी ना होश में फिर आएगा सुरा विसुध यह मतवाला
यह अन्तिम बेहोशी अन्तिम साकी अन्तिम प्याला है
पथिक प्यार से पीना इसको फ़िर ना मिलेगी मधुशाला
गिरती जाती है दिन-प्रतिदिन प्रणयनी प्राणों की हाला
मग्न हुआ जाता दिन-प्रतिदिन दीं सुबहें मेरा तन प्याला
रूठ रहा है मुझसे रूप सी दिन-दिन यौवन का साकी
सूख रही है दिन-दिन सुंदरी मेरी जीवन मधुशाला
ढलक रही हो तन के घट से संगिनी जब जीवन हाला
पात्र गरल का ले अब अन्तिम साकी हो आनेवाला
हाथ परस भूले प्याले का स्वाद सुरा जिव्हा भूले
कानों में तुम कहती रहना मधुकण प्याला मधुशाला
मेरे अधरों पर हो ना अन्तिम वस्तु ना तुलसी-जल प्याला
मेरी जिव्हा पर हो अन्तिम वस्तु ना गंगा-जल हाला
मेरे शव के पीछे चलने-वालों याद इसे रखना
राम-नाम है सत्य ना कहना कहना सच्ची मधुशाला
मेरे शव पर वह रोये हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वह जो हो सुरभित मदीरा पीकर मतवाला
दे मुझको वो कंधा जिनके पद-मद डग-मग होंते हो
और जलूं उस ठौर जहाँ पर कभी रही हो मधुशाला
और चिता पर जाए उंडेला पात्र ना घ्रित का पर प्याला
घंट बंधे अंगूर लता में मध्य ना जल हो पर हाला
प्राण-प्रिये यदि श्राद्ध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने-वालों को बुलवा कर खुलवा देना मधुशाला
नाम अगर पूछे कोई तो कहना बस पीने-वाला
काम गरल ना और ढालना सब के मदिरों का प्याला
जाती प्रिये पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला
पितृ पक्ष में पुत्र उठाना अर्घ ना कर में पर प्याला
बैठ कहीं पर जाना गंगा सागर में भरकर हाला
किसी जगह की मिटटी भीगे तृप्ति मुझे मिल जायेगी
दर्पण अर्पण करना मुझको पढ़ पढ़ करके "मधुशाला"
किस पथ से जाऊं असमंजस में है वोह भोला भाला
अलग अलग पथ बतलाथे सब पर मैं यह बतलाता हूँ
राह पकड़ तू एक चला-चल पा जायेगा मधुशाला
सुन कल-कल चल-चल मधु-घट से गिरती प्यालों में हाला
सुन रुन झुन-झुन चल वितरण करती मधुसा की बाला
बस आ पहुंचे दूर नहीं कुछ चार कदम और चलना है
चहक रहे सुन पीने वाले महक रही ये मधुशाला
लाल सुरा की धार लपट सी कह ना देना इसे ज्वाला
मदिरा है मठ इसको कह ना देना उर्र का छाला
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं
पीड़ा में आनंद जिसे हो आए मेरी मधुशाला
धर्म-ग्रन्थ सब जला चुकी है जिसके अन्तर की ज्वाला
मन्दिर मस्जिद गिरजे सब को तोड़ चुका जो मतवाला
पंडित मोमिन पादरियों के फंदों को जो काट चुका
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला
लालायीत अधरों से जिसने हाय नहीं चूमी हाला
हर्षित कम्पित कर से जिसने हाय मधु का छुहा प्याला
हाथ पकड़ कर लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला
बने पुजारी प्रेमी साकी गंगा जल पावन हाला
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला
और लिये जा और पीये जा इसी मन्त्र का जाप कीये जा
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं मन्दिर हो ये मधुशाला
एक बरस में एक बार ही जगती होली की ज्वाला
एक बार ही लगती बाजी जलती दीपो की माला
दुनिया वालों किंतु किसी दिन आ मदिरालय में देखो
दिन में होली रात दिवाली रोज़ मनाती मधुशाला
अधरों पर हो कोई भी रस जिव्हा पर लगती हाला
हां जग हो कोई हाथों में लगता रखा है प्याला
हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती
आंखों के आगे हो कुछ भी आंखों में है मधुशाला.
सुमुखी तुम्हारा सुंदर मुख ही मुझ को कंचन का प्याला
छलक रही है जिसमे मानिक रूप मधुर मादक हाला
मैं ही साकी बनता मैं ही पीने वाला बनता हूँ
जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम वहीँ कही हो मधुशाला
दो दिन ही मधु मुझे पिला कर ऊब उठी साकी बाला
भर कर अब खिसका देती है वोह मेरे आगे प्याला
नाज़-ओ-अदा अंदाजों से अब हाय पिलाना दूर हुआ
अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़-अदाई मधुशाला
छोटे से जीवन में कितना प्यार करूँ पीलूँ हाला
आने के ही साथ जगत में कहलाया जाने-वाला
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तय्यारी
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन मधुशाला
साथ सकी हो अब तक साकी पीकर किस उर्र की ज्वाला
और और की रटन लगाता जाता हर पीने-वाला
कितनी इचहा एक हर जाने-वाला यहाँ छोड़ जाता
कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला
यम् आएगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला
पी ना होश में फिर आएगा सुरा विसुध यह मतवाला
यह अन्तिम बेहोशी अन्तिम साकी अन्तिम प्याला है
पथिक प्यार से पीना इसको फ़िर ना मिलेगी मधुशाला
गिरती जाती है दिन-प्रतिदिन प्रणयनी प्राणों की हाला
मग्न हुआ जाता दिन-प्रतिदिन दीं सुबहें मेरा तन प्याला
रूठ रहा है मुझसे रूप सी दिन-दिन यौवन का साकी
सूख रही है दिन-दिन सुंदरी मेरी जीवन मधुशाला
ढलक रही हो तन के घट से संगिनी जब जीवन हाला
पात्र गरल का ले अब अन्तिम साकी हो आनेवाला
हाथ परस भूले प्याले का स्वाद सुरा जिव्हा भूले
कानों में तुम कहती रहना मधुकण प्याला मधुशाला
मेरे अधरों पर हो ना अन्तिम वस्तु ना तुलसी-जल प्याला
मेरी जिव्हा पर हो अन्तिम वस्तु ना गंगा-जल हाला
मेरे शव के पीछे चलने-वालों याद इसे रखना
राम-नाम है सत्य ना कहना कहना सच्ची मधुशाला
मेरे शव पर वह रोये हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वह जो हो सुरभित मदीरा पीकर मतवाला
दे मुझको वो कंधा जिनके पद-मद डग-मग होंते हो
और जलूं उस ठौर जहाँ पर कभी रही हो मधुशाला
और चिता पर जाए उंडेला पात्र ना घ्रित का पर प्याला
घंट बंधे अंगूर लता में मध्य ना जल हो पर हाला
प्राण-प्रिये यदि श्राद्ध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने-वालों को बुलवा कर खुलवा देना मधुशाला
नाम अगर पूछे कोई तो कहना बस पीने-वाला
काम गरल ना और ढालना सब के मदिरों का प्याला
जाती प्रिये पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला
पितृ पक्ष में पुत्र उठाना अर्घ ना कर में पर प्याला
बैठ कहीं पर जाना गंगा सागर में भरकर हाला
किसी जगह की मिटटी भीगे तृप्ति मुझे मिल जायेगी
दर्पण अर्पण करना मुझको पढ़ पढ़ करके "मधुशाला"
Monday, March 30, 2009
Song for my Love
https://admin.meridhun.com/music/composeitem/8006_15020_131108044512.mp3
Labels:
Nannu,
Nupur Jain,
Saurabh Jain,
Song for my love
Friday, March 27, 2009
Massom Si Mohabbat
मासूम सी मोहब्बत का बस इतना सा फ़साना है,
कागज़ की हवेली है, बारिश का ज़माना है
क्या शर्त-ऐ-मोहब्बत है, क्या शर्त-ऐ-ज़माना है
आवाज़ भी ज़ख्मी है और वो गीत भी गाना है
उस पार उतरने की उम्मीद बहुत कम है
कश्ती भी पुरानी है, तूफ़ान भी आना है
समझे या ना समझे वो अंदाज़-ऐ -मोहब्बत का
एक ख़ास को आँखों से एक शेर सुनाना है
भोली सी अदा, कोई फिर इश्क की जिद पर है
फिर आग का दरिया है.. और डूब के जाना है
________________________________
मंजिल भी उसकी थी रास्ता भी उसी का था
मैं अकेला था काफिला भी उसी का था
साथ साथ चले की सोची फिर रास्ता बदलने का फैसला भी उसी का था
आज तनहा दिल ये सवाल करता है
लोग तो उसी के थे,क्या खुदा भी उसी का था
कागज़ की हवेली है, बारिश का ज़माना है
क्या शर्त-ऐ-मोहब्बत है, क्या शर्त-ऐ-ज़माना है
आवाज़ भी ज़ख्मी है और वो गीत भी गाना है
उस पार उतरने की उम्मीद बहुत कम है
कश्ती भी पुरानी है, तूफ़ान भी आना है
समझे या ना समझे वो अंदाज़-ऐ -मोहब्बत का
एक ख़ास को आँखों से एक शेर सुनाना है
भोली सी अदा, कोई फिर इश्क की जिद पर है
फिर आग का दरिया है.. और डूब के जाना है
________________________________
मंजिल भी उसकी थी रास्ता भी उसी का था
मैं अकेला था काफिला भी उसी का था
साथ साथ चले की सोची फिर रास्ता बदलने का फैसला भी उसी का था
आज तनहा दिल ये सवाल करता है
लोग तो उसी के थे,क्या खुदा भी उसी का था
Koi Deewana Kehta Hai - Dr. Kumar Biswas
कोई दीवाना कहता है,कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है
मुहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते हैं मेरी आँखों में आँसू हैं
जो तू समझे तो मोती है, ना समझे तो पानी है
बहुत टुटा बहुत बिखरा थपेडे सह नही पाया..
हवाओं के इशारो मे, मगर मैं बह नही पाया...
अधूरा अनसुना ही रह गया ये किस्सा मुहब्बत का
कभी तू सुन नही पायी कभी मैं कह नही पाया...
समंदर पीर के अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाह्त को अपना तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता
की भंवर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
स्वयं से दूर तुम भी हो.... स्वयं से दूर हम भी है...
बड़े मशहूर तुम भी हो...बड़े मशहूर हम भी है..
बड़े मगरूर तुम भी हो... बड़े मगरूर हम भी है..
अथः बड़े मजबूर तुम भी हो,बड़े मजबूर हम भी है...
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है
मुहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते हैं मेरी आँखों में आँसू हैं
जो तू समझे तो मोती है, ना समझे तो पानी है
बहुत टुटा बहुत बिखरा थपेडे सह नही पाया..
हवाओं के इशारो मे, मगर मैं बह नही पाया...
अधूरा अनसुना ही रह गया ये किस्सा मुहब्बत का
कभी तू सुन नही पायी कभी मैं कह नही पाया...
समंदर पीर के अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाह्त को अपना तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता
की भंवर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
स्वयं से दूर तुम भी हो.... स्वयं से दूर हम भी है...
बड़े मशहूर तुम भी हो...बड़े मशहूर हम भी है..
बड़े मगरूर तुम भी हो... बड़े मगरूर हम भी है..
अथः बड़े मजबूर तुम भी हो,बड़े मजबूर हम भी है...
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