Friday, March 27, 2009

Massom Si Mohabbat

मासूम सी मोहब्बत का बस इतना सा फ़साना है,
कागज़ की हवेली है, बारिश का ज़माना है
क्या शर्त--मोहब्बत है, क्या शर्त--ज़माना है
आवाज़ भी ज़ख्मी है और वो गीत भी गाना है
उस पार उतरने की उम्मीद बहुत कम है
कश्ती भी पुरानी है, तूफ़ान भी आना है
समझे या ना समझे वो अंदाज़- -मोहब्बत का
एक ख़ास को आँखों से एक शेर सुनाना है
भोली सी अदा, कोई फिर इश्क की जिद पर है
फिर आग का दरिया है.. और डूब के जाना है
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मंजिल भी उसकी थी रास्ता भी उसी का था
मैं अकेला था काफिला भी उसी का था
साथ साथ चले की सोची फिर रास्ता बदलने का फैसला भी उसी का था
आज तनहा दिल ये सवाल करता है
लोग तो उसी के थे,क्या खुदा भी उसी का था

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