Sunday, April 5, 2009

मधुशाला

Lyrics of मधुशाला
(Sung By Manna De and Written by Dr Harivansh Rai Bachchan)
मदिराल्य में जाने को घर से चलता है पीनेवाला
किस पथ से जाऊं असमंजस में है वोह भोला भाला
अलग अलग पथ बतलाथे सब पर मैं यह बतलाता हूँ
राह पकड़ तू एक चला-चल पा जायेगा मधुशाला

सुन कल-कल चल-चल मधु-घट से गिरती प्यालों में हाला
सुन रुन झुन-झुन चल वितरण करती मधुसा की बाला
बस आ पहुंचे दूर नहीं कुछ चार कदम और चलना है
चहक रहे सुन पीने वाले महक रही ये मधुशाला

लाल सुरा की धार लपट सी कह ना देना इसे ज्वाला
मदिरा है मठ इसको कह ना देना उर्र का छाला
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं
पीड़ा में आनंद जिसे हो आए मेरी मधुशाला

धर्म-ग्रन्थ सब जला चुकी है जिसके अन्तर की ज्वाला
मन्दिर मस्जिद गिरजे सब को तोड़ चुका जो मतवाला
पंडित मोमिन पादरियों के फंदों को जो काट चुका
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला

लालायीत अधरों से जिसने हाय नहीं चूमी हाला
हर्षित कम्पित कर से जिसने हाय मधु का छुहा प्याला
हाथ पकड़ कर लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला

बने पुजारी प्रेमी साकी गंगा जल पावन हाला
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला
और लिये जा और पीये जा इसी मन्त्र का जाप कीये जा
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं मन्दिर हो ये मधुशाला

एक बरस में एक बार ही जगती होली की ज्वाला
एक बार ही लगती बाजी जलती दीपो की माला
दुनिया वालों किंतु किसी दिन आ मदिरालय में देखो
दिन में होली रात दिवाली रोज़ मनाती मधुशाला

अधरों पर हो कोई भी रस जिव्हा पर लगती हाला
हां जग हो कोई हाथों में लगता रखा है प्याला
हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती
आंखों के आगे हो कुछ भी आंखों में है मधुशाला.

सुमुखी तुम्हारा सुंदर मुख ही मुझ को कंचन का प्याला
छलक रही है जिसमे मानिक रूप मधुर मादक हाला
मैं ही साकी बनता मैं ही पीने वाला बनता हूँ
जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम वहीँ कही हो मधुशाला

दो दिन ही मधु मुझे पिला कर ऊब उठी साकी बाला
भर कर अब खिसका देती है वोह मेरे आगे प्याला
नाज़-ओ-अदा अंदाजों से अब हाय पिलाना दूर हुआ
अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़-अदाई मधुशाला

छोटे से जीवन में कितना प्यार करूँ पीलूँ हाला
आने के ही साथ जगत में कहलाया जाने-वाला
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तय्यारी
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन मधुशाला

साथ सकी हो अब तक साकी पीकर किस उर्र की ज्वाला
और और की रटन लगाता जाता हर पीने-वाला
कितनी इचहा एक हर जाने-वाला यहाँ छोड़ जाता
कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला

यम् आएगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला
पी ना होश में फिर आएगा सुरा विसुध यह मतवाला
यह अन्तिम बेहोशी अन्तिम साकी अन्तिम प्याला है
पथिक प्यार से पीना इसको फ़िर ना मिलेगी मधुशाला

गिरती जाती है दिन-प्रतिदिन प्रणयनी प्राणों की हाला
मग्न हुआ जाता दिन-प्रतिदिन दीं सुबहें मेरा तन प्याला
रूठ रहा है मुझसे रूप सी दिन-दिन यौवन का साकी
सूख रही है दिन-दिन सुंदरी मेरी जीवन मधुशाला

ढलक रही हो तन के घट से संगिनी जब जीवन हाला
पात्र गरल का ले अब अन्तिम साकी हो आनेवाला
हाथ परस भूले प्याले का स्वाद सुरा जिव्हा भूले
कानों में तुम कहती रहना मधुकण प्याला मधुशाला


मेरे अधरों पर हो ना अन्तिम वस्तु ना तुलसी-जल प्याला
मेरी जिव्हा पर हो अन्तिम वस्तु ना गंगा-जल हाला
मेरे शव के पीछे चलने-वालों याद इसे रखना
राम-नाम है सत्य ना कहना कहना सच्ची मधुशाला


मेरे शव पर वह रोये हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वह जो हो सुरभित मदीरा पीकर मतवाला
दे मुझको वो कंधा जिनके पद-मद डग-मग होंते हो
और जलूं उस ठौर जहाँ पर कभी रही हो मधुशाला

और चिता पर जाए उंडेला पात्र ना घ्रित का पर प्याला
घंट बंधे अंगूर लता में मध्य ना जल हो पर हाला
प्राण-प्रिये यदि श्राद्ध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने-वालों को बुलवा कर खुलवा देना मधुशाला

नाम अगर पूछे कोई तो कहना बस पीने-वाला
काम गरल ना और ढालना सब के मदिरों का प्याला
जाती प्रिये पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला

पितृ पक्ष में पुत्र उठाना अर्घ ना कर में पर प्याला
बैठ कहीं पर जाना गंगा सागर में भरकर हाला
किसी जगह की मिटटी भीगे तृप्ति मुझे मिल जायेगी
दर्पण अर्पण करना मुझको पढ़ पढ़ करके "मधुशाला"


6 comments:

  1. madhushala toh madhushala hai saheb....
    AAPKO BADHAI

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  2. Saans jaane bojh kaise jivan ka dhoti rahi
    Nayan bin ashru rahe par zindagi roti rahi.

    Ek mahal ke bistare pe sote rahe kutte billiyaan
    Dhoop me pichwaade ek bachchi choti soti rahi .

    Ek naajuk khwaab ka anzaam kuch easa hua
    Main tadapta raha idhar wo us taraf roti rahi

    Tang aakar Muflisi se khudkushi kar li magar
    Do ghaz qafan ko laash uski baat johati rahi

    Bookh gharibi,laachari ne umar tak peecha kiya
    Mehnat ke rookh par zardian tan pe phati dhoti rahi

    Aaj to us maa ne jaise - taise bachche sulaa diye
    Kal ki fikr par raat bhar daaman bhigoti rahi.

    “Deepak” basher ki khawahishon ka qad itna bad gaya
    Khawahishon ki bheed me kahi zindagi khoti rahi.
    @ Kavi Deepak Sharma
    http://www.kavideepaksharma.co.in
    http://www.shayardeepaksharma.blogspot.com

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  3. बेहतर है श्रीमान...
    शुभकामनाएं.....

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  4. i love this poem the most.a lot of thanks to the writer .... From. Master Om Parkash Malodia ,Distt. Hissar,Haryana(india)

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